जी रहे है अभी तेरी शर्तो के मुताबिक ऐ जिंदिगी,
आएगा कभी हमारी फरमाइशों का भी…
वो तोड़ गए दिल अब बवाल क्या करें,
मेरी ही पसंद थी अब खुद से सवाल क्या करें …
स्टेशन जैसी हो गई है जिंदिगी
जहां लोग तो बहुत है पर अपना कोई नहीं …
सराफत का जमाना नहीं है,
जनाब माफ़ी मांग लो तो
कमजोर समझ लेते है लोग …
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कुछ कह गए
कुछ सह गए,
कुछ कहते कहते रह गए..
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