Nazar Shayari: नज़रें बड़ी रहस्यमयी होती हैं। उनमें एक जादुई सी ताक़त होती है जो कुछ भी अपना बना सकती है। लेकिन साथ ही वे किसी को नापसंद भी कर सकती हैं।
ये नज़रें जिस पर रुकती हैं और जिसे पसंद करती हैं उस पर अपना जादू चला देती हैं। वह व्यक्ति उनकी दुनिया का केंद्र बन जाता है। लेकिन जिससे ये नज़रें नफ़रत करने लगती हैं उसके लिए तो ये ज़हर से कम नहीं होतीं।
कभी-कभी तो एक ही नज़र में किसी के लिए प्यार और किसी के लिए नफ़रत भी हो सकती है। इसीलिए तो कहा जाता है कि नज़रों की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है जिसका राज़ केवल वो ही जानती हैं।
चलिए आज हम इन नज़रों और उनकी दुनिया से जुड़ी कुछ Nazar Shayari लेकर आये हैं। आइए इन रहस्यमयी नज़रों की बातों में खोएं…
एक नज़र देखते तो जाओ मुझे
कब कहा है गले लगाओ मुझे
Apne chehre se jo jahir hai chhupay kese,
Teri Marzi ke mutabik nazar aayen kese.
Kabhi gumshuda rah par chalkar dekho
Pyaar ho jayga apkoo;
Kabhi hamari nazro me utar kar dekho,
Ikrar ho jayga apko.
Kisi ki nazar me chad gaya hu main pata karo,
chehre pe mere, noor ki barsat ho rhi hai.
Koi Nazar Tujhko Chhue na, Teri nazar utaar lungi,
Main aaj ki puri raat sirf teri aankho me Guzar dungi.
Pegam aaya hai unki taraf se Zara gor farmana,
Nazro se jo shuru hua tha jo ishq, Nazar Laga gaya usko jamana.
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाय कैसे,
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे.
आपकी खूबसूरत नज़र को
जिसने देख लिया होगा..
हमे नहीं लगता वो अबतक
घर पहुंचा होगा…
आपके नज़र का नशा
बरक़रार रहता है,
ये मैखाना इसलिए
मुझसे दूर रहता है…!
इक हमीं तो हैं दीद के क़ाबिल
तू हमीं से नज़र चुराती है
उनकी नज़रें झुकी हैं धीरे धीरे
अब वो शरमा चुकी है धीरे धीरे
उनकी नज़रों में अब ऊपर उठना है
ख़ुद की नज़रों में अब गिरना ही होगा
एक नज़र देखते तो जाओ मुझे
कब कहा है गले लगाओ मुझे
एक लड़की है मुस्कुराती है
मोजिज़े हुस्न के दिखाती है
ऐसे वो अपना असर छोड़ गया
मुझपे वो अपनी नज़र छोड़ गया
कभी गुमशुदा राह पर चलकर देखो,
प्यार हो जाएगा आपको…
कभी हमारी नज़रों में उतर कर देखो,
इकरार हो जाएगा आपको.
कभी ज़िन्दगी से यूँ न चुराया करो नज़र
कि मौजूद भी रहो तो न आया करो नज़र
कभी तो यार आ जाओ सताने को
नज़र आओ नज़र हमसे मिलाने को
कि अब तो नींद से भी है तमाम सी शिकायतें
न जाने बात क्या है जो नज़र में आती ही नहीं
कि दिल को चीर दिखाने का हमको ज़ौक नहीं
तेरी नज़र में गलत हैं तो हम गलत ही सही
किसी की नज़र में चढ़ गया हूँ मैं पता करो,
चेहरे पे मेरे, नूर की बरसात हो रही है.
कोई नज़र तुझको छुए न, तेरी नज़र उतार लूँगी,
मैं आज की पूरी रात सिर्फ तेरी आँखों में गुजार दूंगी.
खार से गुल, गुलों से हार बनाने वाले
अब कहाँ हैं अदू को यार बनाने वाले
गुज़ारिश है ज़रा झुमका हिला दो
मेरी नज़रों को झूला झूलना है
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं
चाँद पर तेरी नज़र को देख कर ही
टूट जाता है ये तारा धीरे धीरे
चाहत खरीदना मेरी आदत नही है और
उसकी नजर में सब कुछ पैसा है जान दे
ज़िक्र तुमने किया मगर फिर भी
हो रहा क्यों नहीं असर फिर भी
जिधर देखा उधर नज़र आया
यार मेरा किधर नज़र आया
डगर मुश्किल मगर है हौसले पुरज़ोर सीने में
रगों में रक्त है उबला मचा है शोर सीने में
तुझ तक आने का सफ़र इतना भी आसाँ तो न था
तूने फेरी है नज़र हमसे जिस आसानी से
तेरे आ जाने की अफ़वाह भर से
नज़र दरवाज़े से हटती नहीं है
दिल मसर्रत से भर नहीं आता
जब मुझे वो नज़र नहीं आता
दूर जाते ही नज़र आने लगे हो तुम मुझे
लग रहा है पास की मेरी नज़र कमज़ोर है
नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
ग़ज़ल ने सीखे हैं अंदाज़ सब तुम्हारी तरह
नज़रो में सबकी माना कि छोटा सा हो गया
देखा कभी जो माँ ने मै आला सा हो गया
नज़ारे आँख में चुभने लगे हैं
यहाँ हम साथ आते थे तुम्हारे
निहारा था बड़ी शिद्दत से उसने इक दफ़ा मुझको
तभी नज़रों में उसकी मैंने पूरा खो दिया ख़ुद को
पहले डाली तेरे चेहरे पे बहुत देर नज़र
ईद का चाँद तो फिर बाद में देखा मैंने
पैगाम आया है उनकी तरफ से ज़रा गौर फरमाना,
नज़रो से जो शुरू हुआ था जो इश्क, नज़र लगा गया उसको जमाना.
बात इतनी सी है मेरे हम दम
तू नज़र आया जब जिधर देखा
महताब तेरे रुख़ की ज़ियारत का नाम है
सिंदूर तेरी माँग का उल्फ़त का नाम है
महबूब को नज़रों के दरीचे में बिठा कर
करते रहो रौशन दर-ओ-दीवार ग़ज़ल के
मिरी नज़र में ख़ाक तेरे आइने पे गर्द है
ये चाँद कितना ज़र्द है ये रात कितनी सर्द है
मेरी नज़र में उसने जब उस नज़र से देखा
दिल में मेरे ये कैसे जज़्बात आ रहे हैं
मेरी नज़रों में वो बसे कब थे?
जिनकी नजरों से गिर चुका हूँ मैं
मेरी नज़रों से ख़ुद को देखो तुम
तुम हो क्या चीज़ जान जाओगी
मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र
जब नज़र से मिलायी मज़ा आ गया
मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी
तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे
मोहब्बत में रक़ीबों पे नजर जाती है समझो
अजब है पर इधर की बेल उधर जाती है समझो
यहाँ पे अब नज़र में कुछ दिखाई तो नहीं देता
यहाँ सबके नज़र में यार अब पैसा उतर आया
यहाँ फुटपाथ पे अब तो नज़र है ही नहीं आख़िर
पढ़ाई छोड़ मजबूरी कहे मुझको कमाना है
यूँ मुझे टकटकी लगाके न देख
धीरे-धीरे सुलग न जाऊँ मैं
वो लौटेंगे कभी वापस हमे इम्कान होता है
मगर फिर भी मियाँ इम्कान तो इम्कान होता है
शोख़ नज़रों के इशारे हो गए
ख़ुशनुमा सारे नज़ारे हो गए
सर्द शामें और गर्माहट भरी उसकी नज़र
इसलिए भी उस नज़र से ये नज़र हटती नहीं
सहारा भी किनारा भी सुनो तो जान तुम ही हो
अरे मेरी नज़र का बस सदा अरमान तुम ही हो
हमारे बाद उसकी इस नज़र में कौन था वैसे
हमारे बाद चश्मों से नमी किसने निकाली थी
हाल−चाल नहीं पूछते
लेकिन खबर रखते हो..
सुना है आप मुझपर
नज़र रखते हो..?
होंगी नज़रें सभी की मुझ पे ही फिर
उस ने गर इक नज़र भी देख लिया