Bachpan Shayari: बचपन जीवन का सबसे ख़ूबसूरत दौर होता है। बचपन में हर चीज़ नई और रोमांचक लगती है। बचपन में कोई चिंता-टेंशन नहीं होती। बच्चे हमेशा खेलने-कूदने में व्यस्त रहते हैं। बचपन में सबसे ज्यादा माँ-बाप का प्यार मिलता है।
बचपन में स्कूल जाना, दोस्तों के साथ खेलना, शरारतें करना – ये सब बहुत मज़ेदार होता है। बचपन में कोई जिम्मेदारी नहीं होती। बच्चे बेफ़िक्र रहकर अपना बचपन भरपूर आनंद लेते हैं।
लेकिन बड़े होने के साथ बचपन की यादें भी धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगती हैं। बचपन के खिलौने, बचपन के दोस्त और बचपन की मस्ती – सब यादों में बस जाता है। लेकिन बचपन की बेपरवाह ख़ुशी और मासूमियत कभी नहीं भूली जा सकती। इसलिए आज मैं आपके लिए bachpan ki shayari लाया हु चलो उन यादो को फिर से ताजा करे
बचपन शायरी
वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है।
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी,
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया।
अपना बचपन भी बड़ा कमाल का हुआ करता था,
ना कल की फ़िक्र ना आज का ठिकाना हुआ करता था।
अब भी तो है बचपना,
प्रेम करते हैं, पर मिल कर नहीं।
अब वो खुशी असली नाव
मे बैठकर भी नही मिलती है,
जो बचपन मे कागज की नाव
को पानी मे बहाकर मिलती है।
इतनी चाहत तो लाखो
रुपए पाने की भी नहीं होती,
जितनी बचपन की तस्वीर
देखकर बचपन में जाने की होती है।
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में,
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
उम्र के साथ ज्यादा कुछ नहीं बदलता,
बस बचपन की ज़िद्द
समझौतों में बदल जाती है।
ए ज़िंदगी! तू मेरी बचपन की गुड़िया जैसी बन जा,
ताकि जब भी मैं जगाऊँ तू जग जा।
ऐ जिंदगी तू ले चल मुझे,
बचपन के उस गलियारे में,
जहाँ मिलती थी हमें खुशियाँ,
गुड्डे-गुड़ियों के ब्याह रचाने में।
कभी कभी लगता है
लौट आए वो बचपन फिर से,
औऱ भूल जाए खुदको पापा की गोद मे।
करता रहूं बचपन वाली नादानियां उम्र भर,
ना जाने क्यों दुनिया वाले उम्र बता देते है।
कहां समझदार हो गए हम,
वो नासमझी ही प्यारी थी,
जहां हर कोई दोस्त था,
हर किसी से यारी थी।
काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था,
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था,
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।
कागज़ के जहाज बरसात के पानी मे चलाकर!!
गली में सबसे अमीर हुआ करते थे!!
कितने खुबसूरत हुआ करते थे,
बचपन के वो दिन सिर्फ दो
उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर
से शुरु हो जाया करती थी।
कितने खूबसूरत हुआ करते थे वो दिन बचपन के!!
सिर्फ दो अनग्लियां जुडने से दोस्ती शुरू हो जाति थी!!
बचपन में खेल आते थे हर इमारत की छाँव के नीचे!!
अब पहचान गए है मंदिर कौन सा और मस्जिद कौन सा!!
कुछ ज़्यादा नहीं बदला बचपन से अब तक,
बस अब वो बचपन की जिंद समझौते में बदल रहीं है।
कुछ यूं कमाल दिखा दे ऐ जिंदगी,
वो बचपन ओर बचपन के दोस्तो
से मिला दे ऐ जिंदगी।
कोई तो रुबरु करवाओ
बेखोफ़ हुए बचपन से,
मेरा फिर से बेवजह
मुस्कुराने का मन हैं।
कोई मुझको लौटा दे वो ✒ बचपन का सावन!!
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी!!
कोई लौटा दे वो बचपन के दिन,
टूटे खिलौने वो मेले की जिद,
माँ की लोरी वो दादी की कहानी,
आती है याद बचपन की पुरानी।
कौन कहता है कि मैं जिंदा नहीं,
बस बचपन ही तो गया है बचपना नहीं।
खुशियाँ भी हो गई है अब उड़ती चिड़ियाँ,
जाने कहाँ खो गई, वो बचपन की गुड़ियाँ।
खेलना है मुझे मेरी माँ की गोद में,
के फिर लौट के आजा मेरे बचपन।
गुम सा गया है अब कही बचपन,
जो कभी सुकून दिया करता था।
चले आओ कभी टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े से!!
वो बचपन की तरह फिर से मोहब्बत नाप लेते हैं!!
जिंदगी की राहों में कही
खो गया है बचपन,
ढूंढ़ता रहता हु मै उसे,
पता नहीं कहा गया मेरा बचपन!
ज़िन्दगी के कमरे में एक बचपन का कोना है,
समेटनी हैं उसकी यादें,
और उन यादों में खोना है।
ज़िन्दगी वक्त से पहले उम्र के तजुर्बे दे जाती है,
बालों की रंगत ना देखिए जिम्मेदारी बचपन ले जाती है।
जिम्मेदारियों ने वक्त से पहले
बड़ा कर दिया साहब,
वरना बचपन हमको भी बहुत पसंद था।
जी लेने दो ये लम्हे
इन नन्हे कदमों को,
उम्रभर दौड़ना है इन्हें
बचपन बीत जाने के बाद।
जैसे बिन किनारे की कश्ती,
वैसे ही हमारे बचपन की मस्ती।
जो सपने हमने बोए थे!!
नीम की ठंडी छाँवों में!!
कुछ पनघट पर छूट गए!!
कुछ काग़ज़ की नावों में!!
तभी तो याद है हमे
हर वक्त बस बचपन का अंदाज,
आज भी याद आता है,
बचपन का वो खिलखिलाना
दोस्तों से लड़ना, रूठना, मनाना।
तू बचपन में ही साथ छोड़ गयी थी,
अब कहाँ मिलेगी ऐ जिन्दगी,
तू वादा कर किसी रोज ख़्वाब में मिलेगी।
ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर,
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर,
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।
नींद तो बचपन में आती थी,
अब तो बस थक कर सो जाते है।
पुरानी अलमारी से देख मुझे खूब मुस्कुराता है,
ये बचपन वाला खिलौना मुझें बहुत सताता है।
पैसे तो बहुत हैं, काश पैसों से अपना बचपन खरीद पाता!!
फिर से नज़र आएंगे किसी और में
हमारे ये पल सारे,
बचपन के सुनहरे दिन सारे।
बचपन की दोस्ती थी
बचपन का प्यार था,
तू भूल गया तो क्या
तू मेरे बचपन का यार था।
बचपन की यादें मिटाकर बड़े रास्तों पे कदम बढ़ा लिया,
हालात ही कुछ ऐसे हुए की बच्चे से बड़ा बना दिया।
बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे
बचपन को कैद किया
उम्मीदों के पिंजरों में,
एक दिन उड़ने लायक कोई परिंदा नही बचेगा।
बचपन तो वहीं खड़ा इंतजार कर रहा है,
तुम बुढ़ापे की ओर दौड़ रहे हो।
बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें
या ज़मीन पर आँख बिस्तर पर
ही खुलती थी।
बचपन भी क्या खूब था ,
जब शामें भी हुआ करती थी,
अब तो सुबह के बाद,
सीधा रात हो जाती है।
बचपन भी बड़ा अजीब था,
हर कोई जीवन में करीब था,
क्या बात करूं उस जमाने की,
हर रिश्ता खुद में अज़ीज़ था।
बचपन में किसी के पास घड़ी नही थी,
मगर टाइम सभी के पास था,
अब घड़ी हर एक के पास है,
मगर टाइम नही है!
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे जहां चाहा रो लेते थे!!
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए!!
और आंसूओं को तनहाई!!
बचपन में भरी दुपहरी नाप आते थे पूरा गाँव!!
जब से डिग्रियाँ समझ में आई!!
पाँव जलने लगे!!
बचपन में यारों की यारी ने,
एक तोफ़ा भी क्या खूब दिया,
उनकी बातों के चक्कर में पड़,
माँ बाप से भी कूट लिया।
बचपन मैं यारों की यारी ने,
एक तोफ़ा भी क्या खूब दिया,
उनकी बातों के चक्कर में पड़,
माँ बापू से भी कूट लिया।
बचपन से जवानी के सफर में,
कुछ ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते हैं..
तब रोते-रोते हँस पड़ते थे,
अब हँसते-हँसते रो पड़ते हैं।
बचपन से पचपन तक का सफ़र यूं बीत गया साहब,
वक़्त के जोड़ घटाने में सांसे गिनने की फुरसत न मिली।
बचपन से हर शख्स याद करना सिखाता रहा!!
भूलते कैसे है!!
बताया नही किसी ने!!
बचपन है पुलों जैसा,
ना सुलझे सवालों जैसा,
ना फिक्र ना कोई गम की बात,
बचपन तो है बहते पानी जैसा।
बस इतनी सी अपनी कहानी है,
एक बदहाल-सा बचपन,
एक गुमनाम-सी जवानी है।
बहुत खूबसूरत था,
महसूस ही नहीं हुआ,
कब कहां और कैसे
चला गया बचपन मेरा।
बहुत शौक था बचपन में
दूसरों को खुश रखने का,
बढ़ती उम्र के साथ
वो महँगा शौक भी छूट गया।
भटक जाता हूँ अक्सर खुद हीं खुद में,
खोजने वो बचपन जो कहीं खो गया है।
महफ़िल तो जमी बचपन
के दोस्तों के साथ,
पर अफ़सोस अब बचपन नहीं है
किसी के पास।
याद आती है आज छुटपन की वो लोरियां,
माँ की बाहों का झूला,
आज फिर से सूना दे माँ तेरी वो लोरी,
आज झुला दे अपनी बाहों में झूला।
रोने की वजह भी ना थी,
ना हंसने का बहाना था,
क्यो हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।
वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है।
वो क्या दिन थे,
मम्मी की गोद और पापा के कंधे,
ना पैसे की सोच और ना लाइफ के फंडे,
ना कल की चिंता और ना फ्यूचर के सपने,
अब कल की फिकर और अधूरे सपने,
मुड़ कर देखा तो बहुत दूर हैं अपने,
मंजिलों को ढूंढते हम कहॉं खो गए,
ना जाने क्यूँ हम इतने बड़े हो गए।
वो पुरानी साईकिल वो पुराने दोस्त जब भी मिलते है,
वो मेरे गांव वाला पुराना बचपन फिर नया हो जाता है।
वो पूरी ज़िन्दगी रोटी,कपड़ा,मकान जुटाने में फस जाता है,
अक्सर गरीबी के दलदल में बचपन का ख़्वाब धस जाता है।
वो बचपन की अमीरी ना जाने
कहां खो गई जब पानी में
हमारे भी जहाज चलते थे।
वो बचपन भी क्या दिन थे मेरे
ना फ़िक्र कोई ना दर्द कोई
बस खेलो, खाओ, सो जाओ
बस इसके सिवा कुछ याद नही।
वो बड़े होने से डरता है,
इसीलिए बचपना करता है।
वो रेत पर भी लिख देता था अपनी कहानी,
वो बचपन था उसे माफ़ थी अपनी नादानी।
वो शरारत,वो मस्ती का दौर था,
वो बचपन का मज़ा ही कुछ और था।
शरारत करने का मन तो अब भी करता हैं,
पता नही बचपन ज़िंदा हैं या ख़्वाहिशें अधूरी हैं।
शौक जिन्दगी के अब जरुरतो में ढल गये,
शायद बचपन से निकल हम बड़े हो गये।
सपनों की दुनियाँ से तबादला हकीकत में हो गया,
यक़ीनन बचपन से पहले उसका बचपना खो गया।
सीखने की कोई उम्र नही होती,
और फिर सीखते-सिखाते बचपन गुज़र गया।
हँसते खेलते गुज़र जाये वैसी शाम नही आती,
होंठो पे अब बचपन वाली मुस्कान नही आती।
हर एक पल अब तो बस गुज़रे बचपन की याद आती है,
ये बड़े होकर माँ दुनिया ऐसे क्यों बदल जाती है।
अंतिम शब्द
बचपन इंसान के जीवन का सबसे अच्छा और प्यारा दौर होता है। बचपन के दिन बेफिक्री, मस्ती और खेल-कूद से भरे होते हैं। बच्चों को किसी चीज़ की चिंता नहीं होती। वे अपने मां-बाप और दोस्तों के साथ भरपूर आनंद लेते हैं।
बचपन में हर छोटी-बड़ी चीज़ नई और रोमांचक लगती है। पहली बार स्कूल जाना, नए दोस्त बनाना, खेल-कूद करना – सब कुछ मज़ेदार अनुभव होता है। बच्चों को लगता है कि दुनिया में केवल मस्ती और खुशियाँ ही खुशियाँ हैं।
बचपन में मां-बाप से बेहद प्यार और स्नेह मिलता है। मां अपने बच्चे की हर इच्छा पूरी करने को तत्पर रहती है। बाप अपने बच्चे को हर तरह की सीख देने में लगे रहते हैं। दोस्तों के साथ खेल-कूद करते हुए बेवजह की मस्ती करना और शरारतें करना बचपन का बड़ा आनंद देता है।
लेकिन धीरे-धीरे बड़े होने के साथ बचपन के दिनों की यादें फीकी पड़ने लगती हैं। जिम्मेदारियाँ बढ़ने लगती हैं। बचपन की बेपरवाह खुशियाँ और मस्ती यादों में सिमटने लगती है।
लेकिन बचपन की मीठी यादें और खुशनुमा लम्हे हमेशा दिल में बसे रहते हैं। बड़े होने के बाद भी कभी-कभी बचपन की यादों में खो जाना बड़ा सुकून देता है। बचपन के खेल, बचपन के दोस्त और बचपन की मासूमियत की यादें हमें हमेशा भावुक कर देती हैं।
इसलिए, बचपन जीवन का सबसे खूबसूरत पड़ाव होता है जो हमारे मन-मस्तिष्क में सदा के लिए बसा रहता है। बचपन के पल इतने मीठे होते हैं कि उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। और उम्मीद करती हु की बचपन शायरी पढने के बाद आप भी अपने बचपन की यादो में खो गए होंगे
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